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Chhath puja vidhi 2019 : छठ पूजा की सरलतम विधि और काम की बातें

गुरु अरविन्द जी

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चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी चैती छठ और कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को कार्तिकी छठ कहा जाता है। यह पर्व सूर्यदेव की उपासना के लिए प्रसिद्ध है। मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन है। इसलिए छठ पर्व पर छठ देवी को प्रसन्न करने हेतु सूर्य देव को प्रसन्न किया जाता है। गंगा-यमुना या किसी भी नदी, सरोवर के तट पर सूर्य देव की आराधना की जाती है।



महाभारत में भी छठ पूजा का उल्लेख किया गया है। पांडवों की मां कुंती को विवाह से पूर्व सूर्य देव की उपासना कर आशीर्वाद स्वरुप पुत्र की प्राप्ति हुई जिनका नाम था कर्ण। पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भी उनके कष्ट दूर करने हेतु छठ पूजा की थी। यह पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से आरंभ होकर सप्तमी तक चलता है।



प्रथम दिन यानि चतुर्थी तिथि ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। आगामी दिन पंचमी को खरना व्रत किया जाता है और इस दिन संध्याकाल में उपासक प्रसाद के रूप में गुड-खीर, रोटी और फल आदि का सेवन करते हैं और अगले 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखते हैं। मान्यता है कि खरन पूजन से ही छठ देवी प्रसन्न होती है और घर में वास करती है। छठ पूजा की अहम तिथि षष्ठी में नदी या जलाशय के तट पर भारी तादाद में श्रद्धालु एकत्रित होते हैं और उदीयमान सूर्य को अर्ध्य समर्पित कर पर्व का समापन करते हैं।



छठ व्रत की पूजा विधि

छठ पूजा मुख्य रूप से बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। हालांकि अब यह पर्व देश के कोने-कोने में मनाया जाता है| पौराणिक कथाओं के अनुसार यह भारत के सूर्यवंशी राजाओं के मुख्य पर्वों से एक था। एक समय मगध सम्राट जरासंध के एक पूर्वज को कुष्ठ रोग हो गया था। इस रोग से निजात पाने हेतु राज्य के शाकलद्वीपीय मग ब्राह्मणों ने सूर्य देव की उपासना की थी। फलस्वरूप राजा के पूर्वज को कुष्ठ रोग से छुटकारा मिला और तभी से छठ पर सूर्योपासना की पूजा आरंभ हुई है।

छठ व्रत पूर्ण नियम तथा निष्ठा से किया जाता है। श्रद्धा भाव से किए गए इस व्रत से नि:संतान को संतान सुख की प्राप्ति होती हैं और धन-धान्य की प्राप्ति होती है। उपासक का जीवन सुख-समृद्धि से परिपूर्ण रहता है।

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